मूलनिवासी सन्देश - हड़प्पा मोहेजोंदारो नगरो का धर्म बौद्ध धर्म !-
हा! यह सुनकर कई लोगो को आश्चर्य होगा परन्तु यही सही है।ब्राम्हण इस
देश में आने के पहले भारत के लोगो की एक परंपरा थी सभ्यता थी।सिद्धार्थ
बुद्ध ने यही परम्परा को आगे चलाया इसी लिए तथागत बुद्ध श्रमण परंपरा के
अग्रणी है। सिन्धु सभ्यता में जो योगी की मूर्ति (शील्ड )है यह शंकर
भगवान की है यह कहना गलत है।शंकर तो अवैदिक था उसके नाम का ब्राम्हण
इस्तेमाल करके अपनाही वर्चस्वा स्थापन करते है।खास कर आरएसएस के लोग वह
शंकर की मूर्ति कहकर उसका ब्राम्हानीकरण करते है .इतनाही नहीं विदेशी
ब्राम्हणों ने सिधु के नगरो को नष्ट किया इसलिए ऋग्वेद में इंद्र को पुरंदर
याने पुर अर्थात नगरो को नष्ट करनेवाला कहा गया है।वह जो मूर्ति है वह
शंकर की नहीं है इसके प्रमाण 1)-उस मूर्ति के गले में नाग नहीं है,हात में
त्रिसुल नहीं है ,शिव का वाहन नंदी है अर्थात बैल है वह भी वहा नहीं है।
2)जबकी हिन्दू धर्म के अनुसार भैसा अपवित्र है और वह उसमे दिखाया
है,इतनाही नहीं बल्कि उसमे उस योगी के सर पर भैसे का मुकुट दिखाया है।भैसा
का मुकुट आदिवासी खास समारोह में पहनते है और हर हिन्दू (sc st obc ,)शादी
के समय जिसे मराठी में बाशिंग कहते है उसका अर्थ ही भैसे का मुकुट धारण
करना यह होता है।इस से मूलनिवासी बहुजन ब्राम्हणों के खिलाप वाला प्रतिक
धारण करते है यह सिद्ध होता है।जबकि ब्राम्हण वह धारण नहीं करते।उस योगी के
निचले छोर में दो हिरन और बिच में धम्म चक्र का प्रतिक है।यह प्रतिक तथागत
बुद्ध के शिल्पों में भी पाए जाते है।इससे यह प्रमाणित हो गया की वह योगी
प्रथम बुद्ध है।योग भी बुद्धो का ही है उसे भी ब्राम्हण अपने बाप की
जागीर समजते है।ब्राम्हणों के पास धर्म नाम का शब्द भी नहीं है वह तो
चुराया हुआ शब्द है।वह भी हमारा है। 3)-तथागत बुद्ध के पहले 27 बुद्ध
हुए है।यह काल्पनिक नहीं इसे इतिहास है।श्रीलंका के दिपवंस ,महावंस नामक
ग्रन्थ में इसके नाम मिले है। 4)-तथागत बुद्ध जब पहली बार 500 भिक्कू ओ
के साथ अपने गाव कपिलवस्तु गए तब उनके पिता राजा सिधोदन ने उन्हें भिक्कू
बनाना छोड़कर राज्य करने को कहा ,जब सिद्धार्थ बुद्ध ने नहीं कहा तब
उन्हें हमने तुम्हे जन्म दिया है हमारा भी तुम पर हक़ है यह जोर देकर बताया।
तब बुद्ध ने पिता को नम्रता से जवाब दिया की भले ही मेरा जन्म आपके घर हुआ
हो मगर मेरा जन्म यह बुद्धो की परम्परा में हुआ है।सिद्धार्थ बुद्ध ने
श्रमणों की महान विरासत को याद किया।सिद्धार्थ बुद्ध के वचनों में कई बार
बुद्ध पूर्व बुद्ध कनक बुद्ध का जिक्र बार बार आता है।यह कनक बुद्ध कोई
काल्पनिक नहीं है इनके याद में सम्राट अशोक ने शिलालेख भी बनाया है जिसमे
बुद्ध पूर्व बुद्ध ऐसा उनका जिक्र है।इसे पुरातत्वीय आधार है। 5)-सिन्धु घाटी में जो बर्तन मिले उसपर पीपल के पत्ते के चिन्ह है !
6)-सिन्धु सभ्यता में पाया गया बुद्ध को प्रथम बुद्ध कहते है।इसे
पशुपतिनाथ भी कहते है।पशुपतिनाथ यह बुद्ध का खास विशेषण है।बुद्ध सारे
प्राणी मात्रा पर करुणा करते है इसलिए पशुपतिनाथ! 7)-यह पोस्ट
इतनाही चर्चा के लिए काफी है अगले पोस्ट में स्वस्तिक यह चिन्ह में बतायेगे
की यह ब्राम्हणों का नहीं है।ऐसे कई प्रतिक है जो विदेशी ब्राम्हानोने
चुराए है।उनपर अगले पोस्ट में लिखेंगे ।
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